Read क्या करें Page 2


  बबली की मम्मी, बबली से बहुत प्यार करती थी और वह कभी बबली को दुखी नहीं करना चाहती थी मगर करें भी तो क्या। यह चंदू है तो कौवा ही, वह भी काला...!

  यह बात सभी जानते हैं कि लालच बुरी बला है। मगर, सवाल है कि जब बड़े भी अपना लालच संभाल नहीं पाते तो भला चंदू कैसे करता। वह तो अभी बच्चा ही था और वह भी कौवा। अरे, तो क्या हुआ, बोजो को यह बात क्या नहीं पता थी कि लालच नहीं करना चाहिये मगर वह भी तो अपने को रोक नहीं पाता था जब बबली की मम्मी संडे को चिकन बनाती थी। वह तो किचन से हिलता भी नहीं था, भले बबली की मम्मी उस पर कितना भी चिल्लाती।

  खैर, अब जो हुआ सो हुआ। अब तो मसला यह था कि क्या जुगत लगायी जाये कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। यानि, चंदू भी घर में रह जाये और बबली की नानी भी राजी हो जायें।

  अब देखिये, समस्या कोई अपने से तो आती नहीं। किसी न किसी तरह लायी ही जाती है, तो भला उसका समाधान और हल भी लाना ही पड़ता है। बोजो वैसे तो समझदार था मगर उसे क्या पता कि जब कोई बात बिगड़ती है, तो उसे बिगाड़ने में जितनी जुगत कुछ लोग लगा रहे होते हैं, उतनी ही तो उसे ठीक करने में भी कोई न कोई लगा ही रहा होता है। यही तो अच्छी बात है।

  थोड़ी देर बाद जब हंगामा थोड़ा शांत हुआ तो बबली के पापा मुस्कुराते हुए बबली के नाना के पास बैठ गये और बेहद संजीदगी से बोले, ‘मैंने कहीं पढ़ा था कि कौवा भगवान का दूत होता है। जब कुछ भविष्य में अच्छा होने वाला होता है तो कौवा आ कर बता जाता है। अब कौवा कांव-कांव कर के क्या बताता है, यह जानना मुश्किल है। हो सकता है कि चंदू अगर हमलोगों के साथ कुछ दिन रहे तो हमलोग सीख पायें कि कौवे क्या और कैसे बोलते हैं। शायद चंदू हमारे भले की ही बात कहना चाहता हो।’

  बबली के नाना ने बबली के पापा के मन की बात समझ ली और बोले, ‘देखिये, कौवा तो मूलतः भक्त और संत होता है। रामायण में काक भुसुंडी की चर्चा है। कौवा तो राम-राम ही करता है मगर उसकी आवाज ही ऐसी है तो कोई क्या करे। और तो और, संगीत की दुनिया में ‘कौंस’ मूल से ना जाने कितने ही बेहद सुरीले राग हैं - मालकौंस, चंद्रकौस, जोगकौंस, मोहनकौंस और भी ना जाने कितने ही। ‘क’ से तो कौशिक भी होता है, साक्षात शिव, सुदंर और सत्य के प्रतीक। फिर ‘क’ से कौवा कैसे बुरा हो गया भला! अब यह है कि भगवान सब को सुरीला थोड़ा ही बनाते हैं। अब देखिये, जरूरी यह है कि इंसान बेसुरा ना हो, जुबान अगर बेसुरी हो भी तो क्या फर्क पड़ता है।‘

  बस हो चला। बबली की नानी फिर बिफर पड़ीं। एक बार फिर घमाशान मचा। बबली और बोजो चंदू को लेकर दूसरे कमरे में भाग लिये। चंदू बेचारा तो इतना डर गया था कि उसे तो यह भी याद नहीं रहा कि वह बोजो को एक टुकड़ा बालूशाही खिलाने को कहता। बेचारे की तो इज्जत भी गई, बहुत फजीहत हुई और जिसकी वजह से हुई, वह भी नसीब नहीं हुआ - माया मिली ना राम!

  हालांकि, पूरे मामले में चंदू के छोटे से दिमाग में यह बात आ गई कि कोई क्या और कैसे बोलता है, इस बात का बहुत असर होता है। इसलिये, चंदू ने तय किया कि अब वह बहुत सोच-समझ कर ही कुछ बोलेगा। मगर फिर भी, यह बात उसके समझ में नहीं आ पायी कि कांव-कांव बोलने से बबली की नानी को इतनी तकलीफ क्यूं है और अगर वह काला है तो इसमें मुसीबत क्या है। उसने बोजो से यह बात पूछी भी मगर बोजो ने उसे प्यार से समझाया कि जो बात बड़े समझ सकते हैं, वह उसके जैसे बच्चे नहीं समझ सकते। उसके लिए उन्हें बड़ा होने का इंतजार करना पड़ता है।

  खैर, चंदू मान भी गया। मानता नहीं तो और करता भी क्या। सारी आग तो उसी की वजह से लगी हुई थी। समझदारों की दुनिया में सबसे मूर्ख भी तो चंदू ही था। वैसे तो अमूमन मूर्ख मानते नहीं, मगर चंदू बेचारा सहमा हुआ था, इसलिए मान गया।

  इधर बबली का दिमाग लगातार चल रहा था। उसनें ठान लिया था कि किसी भी हाल में वह अपने डाॅगी दोस्त बोजो की चाहत पूरी करेगी। उसने एक प्लान बनाया। रात में जब सब सो गये तो बबली ने अपने कमरे में बोजो और चंदू को अपने पास बिठाया और अपने पूरे प्लान की जानकारी दी। बोजो ने सर हिलाकर मंजूर किया कि उसे जो काम बबली ने दिया है वह उसे पूरी रात जाग कर, कर के ही छोड़ेगा। चंदू भी मरता क्या ना करता, उसनें भी सर हिलाकर चुपचा??
? मान लिया कि वह अपनी पूरी और ईमानदार कोशिश करेगा। पूरी रात बबली, बोजो और चंदू जागते रहे और अपने प्लान के मुताबिक सब कुछ ठीक से करते रहे।

  दूसरी सुबह जब सब लोग जागे और बबली की मम्मी के कमरे में सब चाय पी रहे थे कि बबली लाल रंग का एक बड़ा बासकेट ले कर आयी। उसमें कोई चीज बिलकुल सफेद हिलडुल रही थी। अरे, यह तो चंदू ही था! बबली ने उसे उजले रंग में रंग दिया था। उसके बाद तो और भी कमाल हो गया! चंदू ने बबली की नानी की ओर देखा और बोला, ‘नानी अम्मा प्रणाम’। फिर चंदू बबली की मम्मी की ओर मुड़ा और बोला, ‘मम्मी जी गुड मार्निंग’। फिर वह बोजो की ओर देखने लगा। बोजो ने राहत की सांस ली। रात भर जो उसने चंदू को रटवाया था, नामुराद ने सही-सही बक दिया था। बबली तो खुशी से ताली पीटने लगी।

  फिर क्या था, सबने बारी-बारी से चंदू को गोद में ले कर दुलार किया। बबली की नानी भी सबको खुश देखकर हंसने लगी। नानी ने कहा, ‘चलो ठीक है, चंदू रह सकता है घर में मगर, जैसे बबली और बोजो ने मिल कर चंदू को बोलना सिखाया है, वैसे ही हम सब मिलकर चंदू को उड़ना भी सिखायेंगे ताकि वह जल्दी से अपनी मम्मी के पास वापस उड़ कर चला जाये।’

  बबली की नानी की बात पर सबने मिलकर तालियां बजाई। बबली के नाना भी कहां मौका छोड़ने वालों में से थे। उन्होंने छूटते ही कहा, ‘काश मैं भी उड़ना सीख पाता तो चंदू की तरह अपनी मम्मी के पास जा पाता।’ बस, लीजिये, हो चला एक बार फिर से वही सब...!

  मगर, बबली की नानी कहां पीछे रहने वाली थीं। उन्होंने भी मौका देख कर, चंदू को अपने हाथों में ले कर कहा, ‘काश कुछ काले इंसानों को भी उजले रंग से रंग देने से वह अच्छा बोलना सीख पाते...।’

  अब समझिये कि बात निकली तो बहुत दूर तक गयी। मगर सब ने, चंदू के बहाने ही सही, एक दूसरे की टांग खींच कर खूब मजे किये। दिलों की बातें, भड़ास में ही सही, हंसी-खुशी जुबां पर आ जाये तो अच्छा ही होता है। चंदू के भाग्य से छींका टूटा, मगर मलाई सबने मारी...!

  इस बार लेकिन चंदू घबराया नहीं और उसने शांत भाव से बोजो को इशारे में कुछ कहा। बोजो भी बेचारा क्या करता। उसने वादा जो किया था। लोगों की नजर बचा कर बोजो ने फ्रिज खोलकर बालूशाही का एक टुकड़ा उठाया और चुपचाप अपने कमरे में चला गया। इस चंदू के बच्चे ने इतना सब बोलना सीखा भी था तो इसी शर्त पर कि बोजो उसे उसका फेवरेट व लजीज बालूशाही खिलायेगा। लालची कहीं का...!

  मगर, बोजो खुश था। दोस्त के लिए तो यह सब करना ही पड़ता है। फिर चंदू ने भी तो उसकी बात मानी थी और उसकी मेहनत को सफल कर दिया था। और फिर, बबली ने भी तो बोजो को फ्रिज से निकाल कर चिकन खिलाया था। दोस्तों के लिए तो यह सब करना ही पड़ता है।

 

  खैर, हंगामा हुआ और टेंशन भी बहुत हुआ मगर, बोजो के दिमाग में यह समझ आ गयी कि दो चीज जिंदगी में बहुत जरूरी है। पहला तो यह कि समस्या कैसी भी हो और कितनी भी बड़ी हो, हल तभी होती है जब सोच-विचार कर दिमाग लगाया जाये और मेहनत की जाये। दूसरी अहम बात यह समझ में आयी कि अच्छा परिवार वही होता है जो आपस में भले ही थोड़ा-बहुत लड़ता-झगड़ता है, मगर, एक-दूसरे की खुशी के लिए परवाह करता है और साथ-साथ हंसता-मुस्कुराता है।

  दूसरी सुबह, बोजो ने बबली को बेहद गंभीरता से कहा कि वह अब बड़ा हो गया है, मगर, चंदू को अभी टाईम लगेगा...! बोजो ने बेहद दार्शनिक अंदाज में बबली से कहा कि खैर, बबली को इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है क्यूं कि वह तो घर पर ही रहेगा, चंदू के साथ। अच्छा है कि बोजो को स्कूल या आफिस नहीं जाना पड़ता...

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  People say, what conspire to make you what you finally become are always behind the veil of intangibility. Someone called it ‘Intangible-Affectors’. Inquisitiveness was the soil, I was born with and the seeds, these intangible-affectors planted in me made me somewhat analytical. My long stint in media, in different capacities as journalist, as brand professional and strategic planning, conspired too! However, I must say it with all innocence at my behest that the chief conspirators of my making have been the loads of beautiful and multi-dimensional people, who traversed along me, in my life journey so far. The mutuality and innocence of love and compassion always prevailed and magically worked as the catalyst in my learning and most importantly, unlearning from these people. Unconsciously, these amazing people also worked out to be the live theatres of my experiments with my life’s scripts. I, sharing with you as a writer, is essentially my very modest way to express my gratitude for all of them. In my stupidities is my innocence of love for all my beautifully worthy conspirators!

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