Read क्या करें Page 1




  By Santosh Jha

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  Copyright 2017 Santosh Jha

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  प्रस्तावना

  सच मानिये, किस्से-कहानी जैसी कोई चीज होती नहीं। जब सच के अल्हदा टुकड़ों को जोड़ दीजिये, तो कहानी होती है। कुछ हुआ होता है, और फिर उससे थोड़ा इतर, जैसा ‘होना’ हम चाहते रहते हैं, वैसा कह डालिये, तो कहानी होती है। यूं ही, दिल भर आये, शब्द बेसम्हार हो जायें, तो कहानी होती है। कभी, पता नहीं किस मिजाज में, बेसबब ही, दामन छोटा पड़ जाये, तो कहानी होती है। यह कहानी, जो आप अब अपने बच्चों को पढ़ कर सुनानें वाले हैं, वह तो कहानी भी नहीं है। सौ टके ईमानदारी से कहूं, तो यह लम्हों का शुक्राना है। उन पलों को ‘थैंक्यू’ कह सकने की नाकामयाब सी जुगत है, जब ‘वे’ आये। तभी तो मां-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी हुए... फिर, कहानियों को तो आना ही था!

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  बोजो बहुत परेशान था। उसकी समझ में बिलकुल नहीं आ रहा था कि क्या करें। आखिर बोजो था भी तो बस तीन महीने का, छोटा सा, बेवकूफ सा दिखने वाला, मगर समझदार डागी। समस्या भी ऐसी थी कि उसका तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था। अपने मन की बात कहे भी तो किससे कहे। बोजो की जो दोस्त थी, तीन साल की बबली, वह भी तो स्कूल गई थी। क्या करें, बहुत परेशानी थी...!

  कोई कुछ करे भी तो क्या, छोटे से लोगों की परेशानी भी हमेशा बड़ी ही हो जाती है। वैसे तो बड़े लोगों की भी आदत होती है अपनी-अपनी परेशानियों को बेवजह बड़ा करने की। लेकिन बोजो की समस्या तो वास्तव में बहुत बड़ी थी। घर में बोजों के अलावा उसकी दोस्त बबली थी और उसके मम्मी और पापा। वह सब तो बाहर थे। पापा और मम्मी को आफिस जाना होता था और बबली भी स्कूल जाती थी। इतने बड़े घर में नन्हा सा बोजो बेचारा अकेला। उस पर से यह आफत ना जाने कहां से आ टपकी।

  बोजो अपना नाश्ता कर के चुपचाप सोने की कोशिश कर रहा था कि उसे बालकनी में कुछ फड़फड़ाहट सी सुनाई दी। फिर कांव-कांव की घरघराती हुई आवाज आई। बोजो तो पहले डर गया, उसने अपनी जिंदगी में पहली बार ऐसी आवाज सुनी थी। कांव-कांव तो कौवे करते हैं, यह तो उसे पता था मगर, यह तो कुछ अलग सा था। ऐसे जैसे कोई कराह रहा हो।

  बोजो ने हिम्मत जुटाई, करनी ही पड़ती है, घर में अकेले रहने वाले को हिम्मत रखना ही पड़ती है। फिर, बोजो तो कुत्ता था। उसका तो काम ही था घर की रखवाली करना। तो बोजो ने छिप कर, बेहद सावधानी से दरवाजा खोल कर, बालकनी में झांक कर देखा तो हैरान रह गया। एक कौवे का छोटा सा बच्चा अपनी गुलाबी सी चोंच खोले कांव-कांव कर रहा था। वह पंख फड़फड़ता, मगर उड़ नहीं पा रहा था।

  बोजो ने खुद से कहा, ‘यह बेवकूफ यहां क्या कर रहा है? यहां आया कैसे?’

  बोजो ने नजदीक जा कर देखा तो पता चला कि कौवे का बच्चा थोड़ा घायल भी था। उसकी पीठ पर खून के निशान भी थे। बोजो ने देखा कि एक चील उपर मंडरा रहा था। बोजो था तो छोटा मगर बेहद समझदार। उसकी समझ में आ गया कि चील बच्चे को उसके घोंसले से उठाकर ले जा रहा होगा और हड़बड़ाहट में कौवे का बच्चा उसके पंजों से छूट कर बालकनी में गिर गया होगा।

  बोजो ने तुरंत अपना दिमाग लगाया। कौवे के बच्चे को कमरे के अंदर ले आया ताकि चील उसे फिर से ना पकड़ सके। बोजो ने उसे एक मुलायम कपड़े से लपेटा और पानी पिलाया। अपने ही खाने में से उसे खिलाया। कौवे के बच्चे ने उसे थैंक्यू कहा। आखिर बोजो ने उसकी जान बचाई थी। कोई आपकी मदद करे तो थैंक्यू कहना ही पड़ता है। कौवे के बच्चे को उसकी मां ने जरूर ही यह सिखाया होगा।

  यह सब तो ठीक था मगर बोजो की चिंता इस बात से थी कि शाम में जब बबली के मम्मी-पापा आयेंगे तो फिर वह कौवे के बच्चे को देख कर बोजो पर बहुत गुस्सा करेंगे। हालांकि कौवे के बच्चे ने पूछने पर अपना नाम चंदू बताया था मगर था तो वह कोयले से भी काला। और बेवकूफ बोलता भी था कितना कड़वा - ‘कांव-कांव’। उस पर से बबली के नाना-नानी भी तो अगली सुबह आने वाले थे। बोजो को हमेशा से ही बबली की नानी से बहुत डर लगत?
?? था।

  अच्छी बात यह थी कि नन्ही बबली बोजो की अच्छी दोस्त थी। बोजो को घर लाई भी तो बबली ही थी। दूसरी अच्छी बात यह थी कि बबली स्कूल से चार बजे ही आ जाती थी और उसके मम्मी-पापा छह बजे आते थे। बोजो को भरोसा था कि बबली उसकी परेशानी का कोई न कोई हल जरूर निकाल लेगी। बबली थी भी बहुत दिमाग वाली, ऐसा बोजो को विश्वास था, क्यूंकि जब भी वह किसी मुसीबत में होता तो बबली ही उसकी मदद करती थी। बोजो चाहता था कि चंदू उसके साथ ही रहे ताकि जब बबली और उसके मम्मी-पापा घर में ना रहें तो उसे अकेला ना रहना पड़े और वह चंदू के साथ खेले।

 

  खैर, बबली आई और उसने पूरे मामले को ठीक से समझा। चंदू तो था ही भोला-भाला इसलिए बबली को वह पसंद भी आया। वैसे भी बबली बोजो की दोस्त थी तो उसे बोजो के मन की बात समझ में आ भी गई कि बोजो को भी तो अपने जैसा एक फ्रेंड चाहिए। बबली ने चंदू को अपनी फेवरिट बिस्कुट निकाल कर खाने को भी दिया। मगर, समझ में उसकी भी नहीं आ रहा था कि आखिर क्या जुगत लगाई जाये कि चंदू को घर में रहने की इजाजत भी मिल जाये और उसके मम्मी-पापा नाराज भी ना हों।

  बबली और बोजो ने मिलकर यह फैसला किया कि किसी भी कीमत कर चंदू को वह तब तक अपनी हिफाजत में रखेंगे जब तक वह उड़ने लायक ना हो जाये। दोनों ने मिलकर चंदू को समझाया कि जब तक वह इस मसले का कोई उपाय ना ढूंढ लें, वह चुपचाप अल्मारी के उपर सोया रहे और पंख भी ना फड़फडाये। चंदू ने भी मामले की नजाकत को समझा और फिर बबली ने उसे अच्छे से उल्मारी के उपर रख दिया। ढेर सा बिस्कुट और पानी की कटोरी भी चंदू के पास ही रख दी गई।

  बबली और बोजो अच्छे बच्चे थे इसलिए ही वह किसी को भी दर्द व तकलीफ में नहीं देख सकते थे मगर वह अपने मम्मी-पापा और घर के लोगों को भी परेशान नहीं करना चाहते थे। दोनो ही इसलिए बेहद खुश भी थे कि वह बेचारे चंदू की मदद कर पा रहे थे। लेकिन किसी की मदद करना भी तो आसान काम नहीं होता। हर काम को अच्छे से करने में दिमाग लगाना पड़ता है। बबली और बोजो वही तो कर रहे थे। दोनो ही सोच में थे कि क्या करें...!

  मगर, उन्हे क्या पता था कि आगे क्या होने वाला है। रात तो प्लान के मुताबिक कट ही गई। मगर, सुबह सवेरे जो हुआ वह तो बबली और बोजो ने सपने में भी नहीं सोचा था...!

  सुबह-सवेरे बबली के नाना-नानी आ गये। सब बहुत खुश थे। बबली के नाना ने उसके लिए ढेर सारे खिलौने और कपड़े लाये थे। बोजो के लिए भी एक नया कालर आया था। नाना ने उस दुलार भी किया। इतना सब कुछ तो ठीक ही रहा मगर कुछ देर के बाद ही नानी ने एक बड़ा सा डब्बा खोला और लो, उसमें तो बेहद लजीज मिठाईयां थीं। अरे कमाल! लड्डू, पेंड़े, बर्फी, कलाकंद, और तो और बालूशाही भी, वाह...!

  हाय हाय...! क्या लाजवाब खुशबू थी, बालूशाही की। अब जो उसकी महक फैली तो दूर जा के चंदू के नाक में सीधा घुस गई। चंदू तो बेचारा मेहमानों के आने के शोर से सहमा सा चुपचाप अल्मारी के उपर पड़ा हुआ था। मगर, खुशबू सूंघ कर उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। उसे कुछ याद आ गया। एक बार चंदू की मां ने कहीं से बालूशाही का टुकड़ा पाया था और घोंसले में चंदू को खाने को दिया था। चंदू को घी की खुशबू याद आ गई। उसे मिठाई पसंद भी बहुत थी। लो, हो गया कबाड़ा...!

  चंदू से रहा ना गया और वह यह भी भूल गया कि बबली और बोजो ने उसे चुपपाच रहने को कहा था। अल्मारी के उपर से ही चंदू जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा - ‘मुझे भी, मुझे भी...’। इतना ही नहीं, मारे खुशी के, उत्साह व उत्तेजना में उसने अपने पंख भी फड़फड़ाने शुरु किये और वह उड़ कर धब्ब से उसी पलंग पर आ कर गिरा जिस पर नानी मिठाई का डिब्बा ले कर बैठी थीं।

  लीजिये, हो गया गुड़गोबर, मच गया घमाशान। अफरातफरी मच गई। जल्दी ही बात भी खुल गई। बबली ने बड़ी हिम्मत जुटा कर अपने मन की बात बता भी दी। बोजो बहुत घबड़ा गया था, मगर वह भी अपनी दोस्त बबली के साथ खड़ा हो गया और सहमी सी आवाज में बबली के सुर में सुर मिलाने लगा।

  बबली की नानी तो आगबबूला हो गयी। उन्होने साफ कह दिया, ‘यह कौवा तो घर में नहीं रह सकता। दिन भर कांव-कांव करता रहेगा तो भला कैसे कोई चैन से एक भी पल जियेगा?’

  बबली के नाना तो जैसे हर वक्त इसी फिराक में रहते थे कि कैसे बबली के नानी को नापा जा ?
??के। उन्होने और आग लगा दी। कहा, ‘कमाल करती हो, तुम जो दिन-रात कांव-कांव करती हो तो मैं कैसे सालों से जी पा रहा हूं। चैन क्या बाजार में मिलती है?’

  बस, फिर क्या था, बात ने तूल पकड़ लिया। सुलह-सफाई की जो थोड़ी बहुत उम्मीद और गंजाईश थी, वह भी हवा हो गयी।

 

  बबली सोच रही थी, बात क्या इतनी बड़ी है इतना हंगामा हो रहा है? बोजो ने भी दिमाग लगाया और साचेने लगा कि उसे तो सब प्यार करते हैं, फिर चंदू को लेकर इतनी मारामारी क्यूं है। कूं कूं तो वह भी कभी कभार करता ही है। फिर कांव-कांव को लेकर क्या परेशानी है। भों भों तो वह हमेशा ही करता है। उससे कोई नाराज नहीं होता। फिर, बोजो को यह भी भरोसा था कि चंदू छोटा सा ही तो है। एक बार गलती हो गई। उसे समझा दिया जायेगा तो कांव-कांव नहीं करेगा।

  इधर मसला सुलझता हुआ दिख नहीं रहा था। बबली की मम्मी ने कहा, ‘पता नहीं कब तक इस कौवे के बच्चे के पंख निकलेंगे और कब तक यह उड़ पायेगा। फिर यह रहेगा कहां और इसकी पौटी कौन साफ करेगा। और अम्मा तो कौवे को बड़ा अशुभ भी मानती हैं। काला रंग होता भी तो अशुभ ही है। मगर कौवे का बच्चा है भी अभी बहुत छोटा। इसको बाहर छोड़ भी नहीं सकते। फिर, शायद बबली के दिल पर कहीं इसका असर न हो जाये। क्या करें...’